(( जहाँ सादगी भाती है ))
मुझे कहाँ इस दुनिया में बनावटी अदा आती है
चलो वहा चले जहाँ सादगी भाती है
लौटा रहा है वो देखो प्यार के मेरा ये कह के
तुममे अब फूलो की नही काँटो की खुशबू आती है
जानती हुँ के तुम नही आओगे किसी भी शाम को
तेरे इन्तेज़ार में टेबल पे रखी चाय ठंडी हो जाती है
आँखों में जाने कैसा सैलाब लिए बैठे है
हँसते हँसते भी छलक ही जाती है
यू तो कहने को बहुत हैं मेरे अपने
कौन अपना है ये वक़्त बतलाती है