**जहाँ विज्ञान की इति, वहीं अध्यात्म प्रारम्भ**
जहाँ सांसारिक विज्ञान का अन्त होता है, वहीं अध्यात्म विज्ञान प्रारम्भ हो जाता है। क्यों कि सांसारिक विज्ञान का उपयोग करते-2 एक समय ऐसा आता है कि व्यक्ति उससे बैचेन होने लगता है उसकी निस्सारता ज्ञात होने लगती ही, उससे विमुख होता है तब उससे दूरी बनाने का प्रयास करता है, और फिर शुरू करता अपने जीवन में है अध्यात्म विज्ञान का सफर जो कि मानव जीवन का परम ध्येय है :-
विज्ञान**
नाश करे मानुष तन का, पर त्यागनि की इच्छा कबहुँ नहीं आती,
प्रफुल्ल हो मन, करो नवीन आविष्कार जो मानुष के लिए है दुर्घाती।
नाशत है विचार सब, व्याधि सकल तन में अधिक होई जाती,
सोचत नहीं जाके कारण कों मानव, मन में नकली प्रीति है बढ़ाती।
करि करि प्रयोग जाकों दुविधा बढ़े,जो दैवीय गुणन को घटाती,
भयो बाबरों मानव मन, सूझ-सूझ के भी ना ही कछू सुझाती।
शनै-शनै देखत जब विकृत रूप, मन सहित आत्मा भी है अकुलाती,
छोड़न को विचारि करें, तबहु सकल फल व्यर्थ चली जाती।
कहें गुरुदेव विचारि, जा विज्ञान का नाश करौ जो चढो है छाती,
करें जपु ज्ञान विज्ञान योग को, तो फिर क्यों न अध्यात्म प्रगट होई जाती।
अध्यात्म**
नित होई अनुभूति नई मन में, तन की सुधि भी नहीं याद है आती,
पवित्र विचार प्रगटें हिय में, यह अध्यात्म की प्रमुखता कही जाती।
नाम जप से शुरू करिए यह, करे रहिए ,कहिए क्यों लाभ नहि आती,
दुर्गंध लगे सुगंध भरी, बड़ी भारी ईर्ष्या, तृष्णा भी हिय से मिट जाती।
जीवन के प्रति अति प्रेम उपजें, बालक अरु वृद्ध में अति प्रेम समाती,
कर्मकाण्ड है इसमें बबन्डर बड़ा, राम नाम की महिमा बड़ी सरल कहाती।
नित योग करें, गीता गायन भी करें, मानस से महिमा और भी बढ़ जाती,
दरश करें नित सज्जन का, क्यों न अध्यात्म की रेखा तन पर खिच जाती।
गुरुदेव करें अध्यात्म की व्याख्या, जो अति गभीर अरु सरस कहाती,
धरों यदि ध्यान अमितविक्रम को, अध्यात्म ही स्वयं प्रगट होई जाती,