जहाँ इंसान मौसम की तरह न रंग बदलते हों।
जहां फूलों की शक्लों में कभी काटें न उगते हों,
जहां रिश्तों के आईने न पल भर में चटकते हों,
ऐ मेरे दिल कहीं पर हो अगर ऐसी जगह तो चल,
जहां इंसान मौसम की तरह न रंग बदलते हों।
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यहाँ हर होंठ प्यासा है यहाँ हर आँख में राहें,
यहाँ नकली हँसी की आड़ में छिप जाती हैं आहें,
जहां आसूं न पीने हों अगर आएं तो बह जाएं,
हवस की आग में जिस देश में इंसा न जलते हों,
जहां इंसान मौसम की तरह न रंग बदलते हों।
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जनाज़ा नेकनीयत का यहां हर रोज़ उठता है,
यहाँ तो हैसियत को देखकर सूरज भी उगता है,
जहां इंसानियत हैवानियत से यूं न डरती हो,
जहां पर सबकी खातिर एक से कानून चलते हों,
जहां इंसान मौसम की तरह न रंग बदलते हों।
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यहां घुट घुट के जीना है यहाँ घुट घुट के मरना है,
यहां मुश्किल बहुत ही साफ सुथरा होके रहना है,
जहां सच बात कहने सुनने की हिम्मत दिखायी दे,
जहां चेहरों के आगे लोग न चेहरे पहनते हों,
जहां इंसान मौसम की तरह न रंग बदलते हों।
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यहां छोटे बड़े सबके ही मन में खौफ़ पलता है,
यहां जिसको मिले मौका बिना चूके मसलता है,
जहाँ थोड़ी सी हो औरों की खातिर भी समझदारी,
बस अपना ही भला हो ऐसे न अहसास पलते हों।
जहां इंसान मौसम की तरह न रंग बदलते हों।
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कुमारकलहँस,05,05,2021,बोइसर, पालघर।