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11 Feb 2019 · 1 min read

जहर

जहर भरा है सर्प से
भी ज्यादा
इन्सान में

अपना बन कर काटता है
आस्तीन में ही छिपा रहता है
इन्सान की

भाई, भाई के लिए
उगलता है ज़हर
फिर डसता अपनो को ही

परिवार में जहरीली
नौकझौक से
दिल हो जाता है तार तार
हर कोई जहर खिलाता
रहता है बार बार

हाँ ! जहर तो मारता है
एक बार
रिश्तों के जहर मारते है
बार बार

जहर !
बदनाम हो कर भी
है वफादार
इन्सान वफादारी का ढोंग
करते हुए भी
है बदनाम

मत बनाओ जहर
जिंदगी ऐ दोस्त
हँसी खुशी से काटो
जिंदगी ऐ दोस्त
भरोसा नहीं
इस जिंदगी का
फिर क्यो
इकट्ठा करते हो
जहर ऐ इन्सान

स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल

Language: Hindi
585 Views
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