जवाब के इन्तजार में हूँ
#दिनांक:-5/5/2024
#शीर्षक:-जवाब के इन्तजार में हूँ।
सवालात के हवालात में कैद कर दिए गए,
बिना जुर्म जाने मुजरिम करार कर दिए गए ।
लगा ग्रहण एक अनोखे अनाम रिश्ते को,
गलतफहमी में गलत निर्णय कर लिए गए।
सहजता सरलता से मिलनसार हुए ,
दिमाग का मेल दिल बेकरार हुए।
अभिन्नता जान पडी मन को मन में,
धीरे-धीरे जीवन के सुकून करार हुए।
क्या ही कुछ हुआ इस तरह कि,
भरोसे की चरमसीमा से उतार दिए गए
याद ही नहीं फरियाद करती हूँ हर पल,
बहना चाहती हूँ अब भी तुझमें कल-कल।
कैसे बताऊँ घेरे रहता मुझे मेरा बेरंग जीवन,
अभी आशावान हूँ तुम आओगे जरूर कल!
क्या सोचकर क्यूँ चुप्पी साध गए हो ?
संतोषी बनाकर असंतोषजनक करार किए गए।
मुस्कान लौट आई थी अधरों पर यारा,
सुखद एहसास में खुद को पुनः संवारा।
हरेक गलती क्षम्य होती गई दिन-ब-दिन ,
इतना प्रभावित किया कोई होकर हमारा।
जबाव के इंतजार में हूँ अभी भी प्रियवर,
सवाल का न आना भी जवाब धार किए गए।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई