जल
जीवनदायनी प्राणिमात्र की सृष्टि रचयिता तुम हो तुम विहीन सब व्यर्थ अर्थ हैं ।
सब स्पंदनहीन पाषाण निमित्त हैं।
तुम जननी विशालहृदयनी।
करती प्रेरित पातालवासिनी ।
सतत् सेवारत् इस विचार से दान सफल हो जनजीवन में ।
और नष्ट हो अतःर्व्याप्त दहन जगत में।
बनी प्रेरणा इस तत्व ज्ञान में।
नही शाश्वत् मेरा अस्तित्व विद्यमान् में ।
संग्रहित रखना होगा मुझे हे मानव।
अन्यथा न छोड़ेगा यह मृत्युरूपी दानव ।