जल ही कल है
‘जल’ जीवन है ‘जीवन-जल’,कह दिया कहने वालों ने।
जीवन को महफूज रखा है,अब तक पोखर-तालों ने।
जल का दोहन बहुत किया है,समर पम्प के जालों ने।
स्रोतों को जी-भरके दोहा,खुद इसके रखवालों ने।
नैनों का-जल ‘सार’ जगत का,बिन पानी सब सून सुनो।
सूखा नैन-भूमि का पानी,दूभर होगा चून सुनो।
सरस-स्वच्छ जल जीवनदायी,जीवन का आधार बने।
सबको कहाँ मिले मृदु-शीतल,कैसे ‘जीवन-धार’ बने।
स्रोत हुए सब लुप्त धरा के,जल-स्तर गहराई में।
नष्ट स्वयं कर रहे खजाना,झूठी मान-बड़ाई में।
नल-बोरों को व्यर्थ ना खींचो,आवश्यक जल करो प्रयोग।
एक बूंद भी नष्ट किये बिन,मितव्ययता से ही उपयोग।
अब भी समय चेत जाओ,भूजल अति दोहन बन्द करो।
जितना आवश्यक हो खर्चो,व्यर्थ खर्च को मन्द करो।
जल सञ्चयन का हर घर में,यथायोग्य साधन कर लो।
आदत रखो सुधार साथ ही,पक्का अपना मन कर लो।
जल-स्तर की वृद्धि करें जो,वे साधन अपनाओ सब।
जल है आज धरा का अमृत ,दिल से इसे बचाओ सब।
तेज करो उन अभियानों को,जागरूक जन-जन कर दो।
सभी बचाएं “कल का जीवन”,पुष्ट विचार-वचन कर दो।
अग्रिम पीढ़ी को जीवन की ये सौगात थमानी है।
बिन पानी सब पानी-पानी,पानी है जिंदगानी है।