जल्दी से चले आओ
****** जल्दी से चले आओ *******
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सावन का महीना हो रही है काली रैन,
सजन अब चले आओ जिया है बैचैन।
जहाँ भी हो चले आओ छोड़ सब काम,
जल रहा है तन बदन तरस रहें मेरे नैन।
पिया मिलन की आस लौट कर आओ,
राह ताकती अँखियाँ बरस रहें दो नैन।
ठंडी ठंडी पवन मेरे सीने को चीर रही,
अनिल संग चले आओ प्रतीक्षा में नैन।
दहकता है अंग अंग यौवन के ताप से,
सांसे गरम गरम बहक रहे भीगे नैन।
घोंसलों में पक्षी सब प्रेम लीला में लीन,
जोगन की पीड़ा हर लो तन मन बेचैन।
मनसीरत बिन धन माया नहीं काम की,
जल्दी से चले आओ बिलख रहे हैं नैन।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)