जल्दी बरसो मेघ ______ गजल / गीतिका
कोरोना की मार से उबरे भी नहीं थे।
कि दूसरी मार पड़ने लगी।।
फसलें किसानों की खेतों में सड़ने लगी।
चिंता की लकीरें सबके, माथे पर पड़ने लगी।।
दिन पर दिन बीते जा रहे हैं,दिन बारिश के।
अभी तक बरसात आखिर क्यों?नहीं झड़ने लगी।।
रोज उगता है सूरज,नित्य अपने समय से।
हर किसी की नजरें, आसमान में गड़ने लगी।।
इधर उधर से खबरें ही ख़बरें रोज आती है।
लहर तीसरी धीरे-धीरे,अपने पांव धरने लगी।।
हे प्रकृति, क्या? इतने बुरे हो गए हैं हम।
हमसे तुम इतना, क्यों? झगड़ने लगी।।
कोरोना ने पानी वैसे ही, आंखों का सूखा दिया।
जल्दी बरसो मेघ, जरूरत तुम्हारी पड़ने लगी।।
हे मौसम, कैसी? है यह तेरी आदत ,सुन इबादत।
धेर ला अब तो घटाएं ,तेरी बेरुखी हमें खलनें लगी।।
राजेश व्यास अनुनय