जलेबी का घमण्ड
जलेबी को एक बार हो गया घमण्ड ।
अकड़ कर बोली मैं हूँ सबसे मीठी ।
चाश्नी जब जलेबी से बोली… ।
वो तो ठीक है जलेबी बहन
हो तो तुम बहुत मीठी ।
पर ये तो बताओ कैसे मीठी हो ।
जलेबी बोली इसमें क्या है बतलाना ।
कहा न मैं स्वयं ही मीठी हूँ।
इसमें किसी का नहीं है योगदान ।
है मेरी अपनी पहचान।।
सुनकर यह मुरब्बा बोला..
जलेबी बहन वो तो ठीक है ।
पर ये तो बताओ तुममें है किसने मिश्री घोला।
जलेबी फिर से झल्लाई और जोर से चिल्लाई ।
अरे बार-बार हो क्यों करते परेशान।
एकबार कह दिया न नहीं है इसमें किसी का भी योगदान ।।
इतने में रसगुल्ला आया ।
आते ही जलेबी को समझाया ।।
जलेबी बहन कहने से पहले एक बार तो सोचना चाहिये ।
हैं हम सब मीठाई अतएव हमारा व्यवहार भी मीठा होना चाहिये ।।
सोचिये थोड़ा भी भला हममें अकड़ होना चाहिये ।।
जलेबी जोर से चिल्लाई …
और बोली रसगुल्ले चुप हो जा…..
कहा न नहीं है इसमें किसी का भी योगदान ।।
है मेरी अपनी अलग पहचान।।
सारे मिठाई उदास हो गये ।
और वहाँ से चले गये ।।
इतने मैं ही सज गयी दुकान।
चारों ओर दिख रहे थे पकवान।।
लोग आए पर जलेबी की तरफ किसी ने भी नहीं दिया ध्यान ।।
जलेबी को अपने किए पर हुआ पछतावा।