जलियाँवाला बाग शहादत पर श्रद्धा सुमन /
कुण्डलिया
भूली जा सकती नहीं , डायर की बंदूक ।
याद उसे कर आज भी, मन में उठती हूक ।।
मन में उठती हूक , देह में सिहरन होये ।
क्यों ? रहते हम मूक, घृणा जब कोई बोये ।।
कह “ईश्वर” कवि आज,चढ़े जो हँसकर शूली ।
भ्रष्ट-तंत्र की तंग गली में, जनता उनको भूली ।।
-ईश्वर दयाल गोस्वामी ।