जला दो अन्तर्मन की जलन
“जला दो अन्तर्मन की जलन”
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जला दो तुम अन्तर्मन की जलन।
सुखकर होगा यही पवित्र चलन।।
रहो आनंदमयी अनंत मग्न।
खिले चहूँ दिशा आशा का चमन।।
झूमे धरती झूमे नीलगगन।
बरसे प्रेम लिए झर-झर सावन।।
पुष्पों से भर जाए हर दामन।
प्रीत की वाणी हो मिले जन-जन।।
खुशियाँ खेलें झूमे घर-आँगन।
हो जाए हर दिवस-निशा पावन।।
संकुचित न हो हीनता ग्रस्त मन।
भीगे स्नेह प्रेम प्यार लिए जन।।
नव सोच का करें मिल आलिंगन।
सामंजस्य से जागे जड़-चेतन।।
जग भाव विभोर हो ना शोर हो।
जागृत नवल-पौध से जग नूतन।।
पल्लवित शोभा पुष्पित समर्पण।
दिखा दो नवपीढ़ि को सम-दर्पण।।
प्रकृति लिए प्रेम-उपहार क्षण-क्षण।
तुम क्यों बनते लालच का फिर कण।।
रूदन रुके रहें हँसी में मग्न।
नितप्रति बढ़ें और चढ़े हम सघन।।
आरती की थाल फूले कपाल।
हरित मन डाल झूमती-सी चाल।।
उत्थान हो मन में है यह ध्यान।
मेल में विकास खींचिए कमान।।
लोकतंत्र-तीर-भेद-तम-विधान।
चहूँ दिशा गूँजे भारती-गान।।
आर.एस.बी.प्रीतम
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