जलन
दहक उठी है ये सारी बस्तियाँ किसी के आग में
जलन सी अब मच रही है कोयल की राग में
दुख दुना हो जाता है दूसरों का हर हिसाब देखकर
आँखें भी धोखा देती है उसको कामयाब देखकर
मुँह मोड़ लेता हूँ दूसरों की खुशियों को देख
अब तो वो सहारा भी नहीं है जो पहले था मेरा ईश्वर
आज खिताब मेरे हाथ मे है कल किसी ओर के हाथ में होगा
ललचाएगा भी तब वो मुझे जब उसके साथ किसी दुसरे का नाम होगा
बेगानों की खुशियां देख एक तूफान ऐसा भी उठता है
मेरे सर पर छत दे जाए और दूसरों के ऊपर बारिश का नाच दिखाता है
शर्म से सर भी झूका है, हाथ से कलम भी छुटा है
लोग आगे निकल गए मगर मेरे लिए वक्त वहीं पर रूका है
कल कोई मेरे लिए फिक्र करता था आज दुसरों के लिए मरता है
आग तो अब उस मशाल में लगती है जिसमें पानी का सेतु ढहता है
तालियों की गर्जना मेें एक आवाज एसी भी गूँजती है
जो न चाहते हुए भी मेरा अभिनन्दन करती है
लालसा होती है किसी एक चीज को पीने की अगर दूसरा न ले जाये
खून तो तब खोल उठता है जब कोई हमसे ही पहले बाजी मार ले जाये
खुलें आसमान में अब अपवादों के साये दिखते है
उस शोर की क्या बात करें जिसमें केवल नाम बिकते है
-शिवम राव मणि