जलने दो
शब्दान्त- “जलने दो”
प्रेम पावनी उर में पलने दो।
कंटक पथ पर यूँ ही चलने दो।
नहीं हमें अब परवाह किसी की –
दुनिया जलती है तो जलने दो। १।
आज विकल ये तन-मन मिलने दो।
साँसों को साँसों,में घुलने दो।
समिधा बनकर स्वयं समर्पित हूँ –
आहुति प्रेम यज्ञ में जलने दो। २।
स्वप्न सुनहरा दृग में पलने दो ।
सुमन कल्पनाओं के खिलने दो।
एक निष्ठता पूर्ण समर्पण से-
प्रणय मिलन का दीपक जलने दो ।३।
प्रणय पंथ पर पग-पग चलने दो।
शून्य हृदय का क्षण-भर गलने दो।
चिह्न तिमिर का एक न मिल पाए-
मन मंदिर का दीपक जलने दो। ४।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली