जलजला
हर इंसान है इस दुनिया में ,
जलता हुआ एक शोला ।
बाहर से दिखे एकदम शांत ,
मगर भीतर है आग का गोला ।
सीने में जिसके उठते है जलजले ,
जुबान और आंखों से बरसाए अंगारे ,
जहां में नफरत की आग लगा रखी है ,
इन्हीं जुबानों और आंखों ने ।
मुहोबत का तो खत्म हो चुका अब सिलसिला ।
हाथ लगाकर तो देखो किसी शख्स को ,
नहीं ! छूना भी मत ।
तुम इन्हें आईना भी मत दिखाना।
जल जाओगे तुम और आईने को देगा पिघला ।
आज के इंसानों का गुस्सा ।
ईर्ष्या ,द्वेष ,हिंसा और हत्या ,
यह इन्हीं की आग है जो शबनम को भी देगी जला ।
बेहतर है इनसे दूर ही रहो ,कोसों दूर !
जहां न पहुंच सके यह खौफनाक आग ।
इंसान इंसान रहा कहां !
बन चुका है गर वो आग का जलजला ।
तो खुद ही एक दिन जल मरेगा ,
एक दिन अपनी ही आग में।
यही होगा उसकी करनी का सिला ।
ऐसे में वोह खुदा से किस मुंह से ,
करेगा शिकवा और गिला ।
क्योंकि” उसके ” दरबार में ,
जिसने जैसा कर्म किया ,
उसे वैसा ही फल मिला ।