– ,जलजला कभी रूकेगा नही —
इंसान ने अपनी सुख की खातिर
प्रकर्ति को तेहस नहस कर दिया
पानी को भी रोकने के लिए
न जाने कितने बांधो को बना लिया !!
अपनी सुविधा के लिए इंसान ने
हरे भरे वन तक काट दिए
नदियों तक के रूख मोड़ कर
पहाड़ों तक के मुख तोड़ दिए !!
जलजला जब आता है
वो कभी कुछ सुन नही पाता है
इंसान ने जलजले के साथ भी
खुद ही उलझन का सार लिया !!
क्या कभी इतने पहाड़ टूटे थे
क्या कभी इतने जंगल उजड़े थे
इंसान ने अपने लिए देख लो
बेजुबानो तक के घर उजाड़ दिए !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ