जरूरी तो नहीं
गुज़र गया जो वक्त , उसका हर लम्हा अच्छा था
नज़र आया हर इक शख्स, मेरी नज़र में सच्चा था,
अफसोस क्या, जो जमाने को शिकायत मुझसे
हर शख्स मेरे साथ हो, ये जरूरी तो नहीं,
जहां पल-पल बदलते मौसमों के साथ
पत्ता शाख से टूट बे-रंगत और बा-वजूद हो जाता है,
ऐसे बेदर्द ज़माने में कोई हमदर्द
हमारा भी हो, ये जरूरी तो नहीं
यादों की टूटी – बिखरी किरचें
तन और मन को खरोंचती बहुत हैं
ख्वाब टूटे हैं जरूर, पर इस डर से
जीना ही छोड़ दूं, ये जरूरी तो नहीं
मंजिल मिलेगी, ये हौसला बाकी है मुझमें
पंखों में उड़ने का दम अभी बाकी है मुझमें
आसमान का कद भले ही ऊंचा हो, पर
हर बार गिर कर टूट जाऊं, ये जरूरी तो नहीं