जरूरत
खुशियाँ साथ साथ चलती रहीं ।
रंजिशें बार बार बदलती रहीं ।
मुड़ते रहे साथ जरूरत के ,
जरूरतें वक़्त से बदलती रहीं ।
घुटते रहे अरमान भी कभी ,
आरजू कभी खिलती रहीं ।
फैला रहा एक दामन सा ,
मसर्रत वहाँ मचलती रही ।
लौटा नही गुजर वक़्त कभी ,
गुजरे वक़्त को जरूरत न रही ।
उठीं निगाहें फिर एक उम्मीद से ,
आते वक़्त को मुझसे जरूरत रही ।
गाता “निश्चल” नज़्म यूँ ही अक़्सर ,
नज़्म को मेरी जरूरत कभी न रही ।
….. विवेक दुबे”निश्चल”@…