जरा सी बात पर रूठा बहुत है
जरा सी बात पर रूठा बहुत है।
किसी को इश्क़ ने लूटा बहुत है।
यकीं उसपर भला कैसे करूँ मैं,
जिसे सब जानते, झूठा बहुत है।
गले जिसने मुहब्बत को लगाया,
ग़म-ए- उल्फ़त में फिर टूटा बहुत है।
मुझे अपना समझते थे उन्ही का,
सफ़र में साथ भी छूटा बहुत है।
किसी लड़की के करने पर शिकायत,
हमेशा बाप ने कूटा बहुत है।
अभिनव मिश्र अदम्य