जरा – जरा न कहो
जरा सी बात को…. जरा -जरा न कहो
कहो जरा अगर…उसको फिर खरा न कहो
जिंदगी पूर्णता तक भला कब पहुँची
कहता हूँ तो कहते हो अधूरा न कहो
मूक अधरों से बात कितनी निकली….
शब्द कम निकले तो इसे पूरा न कहो
बात… बातों में मैं सबको हँसा देता हूँ
अर्ज ये है के मुझे मसखरा न कहो
हूँ बाक़िफ़…. मैं जिसके रग – रग से
वे कहते हैं सबसे मेरा शजरा न कहो
तुम क्या जानो के कितना चारा है
जिंदगी की दौड़ में मुझे बेचारा न कहो
मैं मस्त हूँ….सिर्फ अपनी मस्ती में
महज घूमने पर कोई आवारा न कहो
-सिद्धार्थ गोरखपुरी