जरा अपने अन्दर देखो
अब ये कैसा अजीब सा शोर है
सन्नाटे के बीच हिंसा घनघोर है ,
कैसे करे कोई एक दूजे पर यकीन
जब खुद के अन्दर बैठा एक चोर है ।
क्यु ना सब ही है शांत रहे
फिर क्यु ये माहौल अशांत रहे,
बाहर से भरे पडे हो झूठ फरेबी से
और सोचते हो की अन्दर एकांत रहे ।।
©नितिन पंडित