जय सिरचन, जय रेणु
सिरचन चिक,
सीतलपाती आदि
बनाते हैं !
वह पैसे के लिए
काम नहीं करता है,
वह प्रेम
और खाने के लिए
कार्य करता है।
वह मुँहजोर है,
पर कामचोर नहीं!
किन्तु हर कोई
सिरचन के
स्वाभिमानी कृत्य को
जानते हुए भी
उन्हें आखिर में
‘ठेस’ पहुंचा ही देता है !
मानू की विदाई से
पहले ही….
जय सिरचन,
जय रेणु !