जमी हुई धूल
उस जमी हुई धूल को साफ़ मत करो
वक़्त के आईने पर पर्दा ज़रूरी होता है।
जो किस्सा भूल जाने में भलाई हो
उसे भूल जाओ.…….याद मत करो
जो छोड़कर जाने में अड़े हैं
उन्हें जाने दो……..फरियाद मत करो
उस जमी हुई धूल को साफ़ मत करो।
पलछिन लम्हा, लम्हें महीने और
महीने साल बन जाते हैं,
और वक़्त के आईने पर
फिर वही धूल जम जाती है।
भूल जाओ कि कौन छूटा
भूल जाओ कि क्यों दिल टूटा
वो जमी हुई धूल मरहम बन जाती है
उस मरहम को यूँहीं बर्बाद मत करो
उस जमी हुई धूल को साफ़ मत करो।
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’