*जमीं भी झूमने लगीं है*
जमीं भी झूमने लगीं है,
आसमान भी मुस्कुराने लगें हैं,
पलाश के फूलों की सुंदरता देख,
मन प्रसन्नचित होने लगे हैं।
हर कली खिल-खिलाती है,
जब मेरी कविता बाहर को झांकती हैं ।
रोक ना पाऊं भावनाओं को मेरे,
कविता बना कर बहाऊ इन्हें।
आप भी मुस्कुराने को,
पढ़ो कविता।
गढ़ों कविता।