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4 Jun 2020 · 1 min read

जमा थे जो पत्थर वो हथियार निकले

जमा थे जो पत्थर वो हथियार निकले
यहाँ रहने वाले ही गद्दार निकले

बचाने जो आए थे इस देश को अब
वो खुद ही तो चोरों के सरदार निकले

कभी जो यहाँ हँसते थे दूसरों पर
हक़ीक़त में ख़ुद भी मजेदार निकले

ये फूलों का गुलशन था जिसके भरोसे
वो माली ही इसके खरीदार निकले

उठाये हकों की जो आवाज़ याँ पर
वही देश के फिर गुनहगार निकले

खबर को भी जैसे दबाया गया हो
तरफदार झूठों के अखबार निकले

1 Like · 3 Comments · 296 Views
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