तेहि पर चढ़ा रंग गुलाल
बसंत के समीप आया पर्व यह,
प्रेम से सब मिलकर खेलो फाग।
ईर्ष्या-द्वेष न त्यागो भाई आज,
तेरे सम्पूर्ण भाग जायेंगे जाग।।
सुन्दर हो आचार विचार सब,
सबसे मधुर बोलो नित वाणी।
जल संरक्षण बहुत जरूरी है,
लगा गुलाल बिखेरो न पाणी।।
ढंग रह उत्तम संग मन में उमंग,
फाग की सबको शुभकामना।
नित्य रहे आप खुशहाल जग में,
कदै न हो मुसीबत से सामना।।
हर घर गाँव गली ढोल मंजीरा,
बजा रहें भारतवासी है आज।
घूम -घूम कर रंग लगावै सब,
लिए घड़ा अमृत पाहल आज।।
रंग गुलाल की लिए पुड़िया को,
बच्चे हर ओर दौड़ रहे हैं आज।
खाना-पीना शुद्ध सात्विक रखो,
आ रही नित प्यार की आवाज।।
धरती बनी नई नवेली दुल्हन,
प्रेम से फाग खेल गाल है लाल।
रंग चुनरियों का प्यारा लगता,
तेहि पर चढ़ गया रंग गुलाल।।
सात रंग से रंगी चुन्दड़िया,
ओढ़े ये धरती देख रही है।
रहे प्रसन्न सदैव संतान मेरी,
आशीष ऐसा नित दे रही है।।
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कवि पृथ्वीसिंह बैनीवाल
9518139200, 9467694029