जब लिखती हूँ मैं कविता
जब लिखती हूँ मैं कविता,
पग नूपुर नहीं, कंठहार नहीं
गहनों से होती श्रृंगार नहीं,
होती है शब्दों की रुनझुनता ,
जब लिखती हूँ मैं कविता ।
बसंत की स्नेहिक वात नही
शिशिर की शीतल प्रताप नहीं
ग्रीष्म की भीषण संताप नहीं,
होती है शब्दों की सधनता
जब लिखती हूँ मैं कविता ।
यौवन की अंगड़ाई नहीं,
बचपन की इठलाई नहीं,
वृद्ध की चारपाई नहीं,
होती है शब्दों की विवशता ,
जब लिखती हूँ मैं कविता ।
प्रात की कलरव सौगात नहीं
मध्य दिनक आलाप नहीं ,
संध्या जीवन की पश्चाताप नहीं,
होती है शब्दों की विषमता ।
जब लिखती हूँ मैं कविता ।
शिव की विषहाला नहीं
इंद्र की मधु प्याला नहीं,
श्रमिक की मधुशाला नहीं,
होती है शब्दों की मादकता ,
जब लिखती हूँ मैं कविता ।
मैथिल का आदरभाव नहीं,
ऋषियों का सरल स्वभाव नहीं,
शीशम की ठंडी छाव नहीं,
होती है शब्दों की सरलता,
जब लिखती हूँ मैं कविता ।
कवि की कल्पना नहीं,
गृहणी की अल्पना नहीं,
मानस की सपना नहीं,
होती है शब्दों की व्यापकता,
जब लिखती हूँ मैं कविता ।
प्रकृति का अछुन्न आकाश नहीं
दिनकर का तेज प्रकाश नहीं,
दूर्वा का तीव्र विकास नहीं,
होती है शब्दों की अमरता,
जब लिखती हूँ मैं कविता ।
उमा झा