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16 May 2020 · 1 min read

जब लिखती हूँ मैं कविता

जब लिखती हूँ मैं कविता,
पग नूपुर नहीं, कंठहार नहीं
गहनों से होती श्रृंगार नहीं,
होती है शब्दों की रुनझुनता ,
जब लिखती हूँ मैं कविता ।

बसंत की स्नेहिक वात नही
शिशिर की शीतल प्रताप नहीं
ग्रीष्म की भीषण संताप नहीं,
होती है शब्दों की सधनता
जब लिखती हूँ मैं कविता ।

यौवन की अंगड़ाई नहीं,
बचपन की इठलाई नहीं,
वृद्ध की चारपाई नहीं,
होती है शब्दों की विवशता ,
जब लिखती हूँ मैं कविता ।

प्रात की कलरव सौगात नहीं
मध्य दिनक आलाप नहीं ,
संध्या जीवन की पश्चाताप नहीं,
होती है शब्दों की विषमता ।
जब लिखती हूँ मैं कविता ।

शिव की विषहाला नहीं
इंद्र की मधु प्याला नहीं,
श्रमिक की मधुशाला नहीं,
होती है शब्दों की मादकता ,
जब लिखती हूँ मैं कविता ।

मैथिल का आदरभाव नहीं,
ऋषियों का सरल स्वभाव नहीं,
शीशम की ठंडी छाव नहीं,
होती है शब्दों की सरलता,
जब लिखती हूँ मैं कविता ।

कवि की कल्पना नहीं,
गृहणी की अल्पना नहीं,
मानस की सपना नहीं,
होती है शब्दों की व्यापकता,
जब लिखती हूँ मैं कविता ।

प्रकृति का अछुन्न आकाश नहीं
दिनकर का तेज प्रकाश नहीं,
दूर्वा का तीव्र विकास नहीं,
होती है शब्दों की अमरता,
जब लिखती हूँ मैं कविता ।
उमा झा

Language: Hindi
16 Likes · 8 Comments · 286 Views
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