जब मैं तन्हाई मे होता हूं
जब मैं तन्हाई में होता हूं
मन की गहराई में होता हूं
बिन पंखों के उड़ जाता हूं
तसब्बुर की ऊंचाई में होता हूं
रूह के अंदर झांकता हूं
अपनी कुव्वत आंकता हूं
झूठ गुमान से कोषों दूर
किरदार की सच्चाई मे होता हूं
अपने ऐब तलाशता हूं
अपने हुनर तराशता हूं
खुद को देख पाता हूं मुकम्मल
ताब ए बीनाई मे होता हूं