जब मैं अरसों बाद स्कूल पहुंचा
हमारा क्लास खो सा गया है।
हमारे इंतजार में थक कर, सो सा गया है।।
तेज घूमते पंखों में अब उदासी सी छाई है।
अधखुली खिड़की को, खिलखिलाते चेहरों की याद आई है।।
आगे से पीछे तक टेबलें , सुस्त सीं पड़ी हैं।
गूंजतीं दीवारें भी, अब चुपचाप खड़ी हैं।।
लेफ्ट साइड की टेबलों को, हमारीं सहेलियों की तलाश है।
राइट साइड की टेबलों को, हमारे सहेलन की आस है।।
आंगे की टेबल को हमारे, बस्ते का इंतजार है।
ठीक बीच की टेबल हमसे, मिलने को बेकरार है।।
सर्द मौसम में खिड़की, देना धूप चाहतीं है।
टेबल पर पड़ी मिट्टी, हमारी तेज फूंक चाहतीं है।।
लगता है जैसे अब भी, यहीं हम बैठे हैं।
यहीं सत्यम् हैं यहीं शिवम् हैं, और यहीं गौतम बैठे हैं।।
___ ‘अमन’