जब भी होता हूँ मुस्कुराने को।
गज़ल
212……212……122…..2
जब भी होता हूँ मुस्कुराने को।
कोई आता है दिल दुखाने को।
भेड़िये से तो जां बचानी है,
आ गया शेर अब तो खाने को।
भागने से भला कहाँ मुमकिन,
अब तो तैयार हो मिटाने को।
गाँधी बन कर के है मिला हमको,
एक थप्पड़ ही और खाने को।
प्यार करिए नजर रहे टेढ़ी,
हो न जुर्रत भी आजमाने को।
फासले कम करो तो होते हैं,
दिल कहे दिल से पास आने को।
प्रेमी बन करके प्रेम बाँटो तो,
हक मिलेगा भी प्रेम पाने को।
…….✍️ प्रेमी