जब भी खुद को यार जगाओगे
जब भी खुद को यार जगाओगे
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ताक़त से जीत दबा सकते हो,कुचल मसल राजा बन जाओगे।
क्या सच्ची जीत तुम्हारी होगी,जब राज दिलों पर ना पाओगे।।
मोहब्बत तो दिल से होती है,
ताक़त का इस पर ज़ोर नहीं है,
जब कोई प्यारा लगने लगता,
खुद का भी रहता गौर नहीं है,
चाहत को चाहत से चाहोगे,दीवाने तब ही कहलाओगे।
ताला चाबी-सी प्रीत बनेगी,इक-दूजे को फिर न भुलाओगे।।
तन-मन दोनों को सुंदर करना,
कोई खुद आप खिंचा आएगा,
माँगे से तो भीख नहीं मिलती,
सोचो मोती कौन लुटाएगा?
लालच देकर गर यार लुभाओगे,यार मिला प्यार नहीं पाओगे।
रिश्ता ये समझौते का होगा,लूटिए आज कल लुट जाओगे।।
आज ज़माना ये दूर सही पर,
तुमको भूला तो हार नहीं है,
राह बहारों की ना देखे जो,
ऐसा कोई गुलज़ार नहीं है,
जब भी खुद को यार जगाओगे,जोश लिए बढ़ते ही जाओगे।
मंज़िल भी होगी जब दीवानी,प्रीतम तुम सबके हो जाओगे।।
–आर.एस.प्रीतम
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