जब भी कभी किशोर
हुआ बुद्धि से प्रौढ़ इक, जब भी कभी किशोर!
दीवारें तब सोच की, … ….हुई आप कमजोर !!
चाटुकारिता का बढा, …तबसे मित्र प्रवाह !
जब से वे लिखने लगे , बिना पढ़े ही वाह !!
रमेश शर्मा
हुआ बुद्धि से प्रौढ़ इक, जब भी कभी किशोर!
दीवारें तब सोच की, … ….हुई आप कमजोर !!
चाटुकारिता का बढा, …तबसे मित्र प्रवाह !
जब से वे लिखने लगे , बिना पढ़े ही वाह !!
रमेश शर्मा