जब फ़ज़ाओं में कोई ग़म घोलता है
जब फ़ज़ाओं में कोई ग़म घोलता है
तब क़लम से इक सुख़नवर बोलता है
आह से डरिये किसी मज़लूम की
आह से तो तख़्त-ए-हाकिम डोलता है
-प्रदीप माहिर
रामपुर उ0 प्र0
जब फ़ज़ाओं में कोई ग़म घोलता है
तब क़लम से इक सुख़नवर बोलता है
आह से डरिये किसी मज़लूम की
आह से तो तख़्त-ए-हाकिम डोलता है
-प्रदीप माहिर
रामपुर उ0 प्र0