जब तू रूठ जाता है
जब तू रूठ जाता है
क़सम से, ये दिल टूट जाता है
आता नहीं कुछ भी समझ
जीना भी छूट जाता है
तू समझता नहीं
कितना मुश्किल हो जाता है
हँसता खेलता मेरा ये दिल
तेरे बिना उदास हो जाता है
छा जाती है अजीब खामोशी
कुछ होश नहीं रहता है
सामने होकर भी जब तू
मुझसे कुछ नहीं कहता है
ज़िंदगी बोझ लगती है
और मन उचाट हो जाता है
पाता हूँ ख़ुद को तेरे बिन जब
जीवन का आधार खो जाता है
जाने कब जानेगा तू
इस दिल को क्या हो जाता है
डूबने के बाद तेरी आँखों में
कहीं और सुकून नहीं पाता है
मेरी आँखों में आंसू
तू कैसे देख पाता है
आज भी तुझे सताने में मुझे
इतना मज़ा क्यों आता है
हो गया बहुत अब तो
तेरा ग़ुस्सा क्यों नहीं जाता है
जीवन की इस राह पर
तू अब साथ क्यों नहीं आता है