जब तुम साथ हो
प्लेटफॉर्म पर खड़ी पत्नी के एक इशारे पर शर्मा जी रेलगाड़ी के डिब्बे से निकल कर बाहर उनके पास आ कर खड़े हो गए । वयोवृद्ध चिकित्सक शर्मा दम्पत्ति अपने विवाह की पचासवीं वर्षगांठ मनाने के लिये कालका शिमला टॉय ट्रेन से यात्रा कर रहे थे । उनके साथ सफ़र में सहायक के तौर पर उनका घरेलू अनुचर गोपाल भी चल रहा था । बाहर के खुले खुले वातावरण में आ कर उन्हें अच्छा लगा । अंदर बैठे बैठे शरीर में उपजी थकान और अकड़न दूर हो गई । कुछ देर बाद श्रीमती शर्मा ट्रेन के पिछ्ले हिस्से की ओर चहल कदमी करने लगीं । शर्मा जी भी संग हो लिये । चलते चलते वे कुछ आगे निकल गए और ट्रेन के डिब्बे पीछे छूट गए । ऊंचे पहाड़ पर चीड़ और देवदार के पेड़ों के बीच से आती ठंडी हवा की महक , पास में गिरते जलप्रपात पर पड़ती सूरज की किरणों से बने इंद्रधनुष और घाटी से उठते बादलों ने उनका मन मोह लिया । कुछ देर मन्त्रमुग्ध रहने के बाद उन्होंने पीछे पलट कर देखा तो ट्रेन चल पड़ी थी । पत्नी की ओर देखते हुए प्लेटफॉर्म पर सरकते डिब्बों को हड़बड़ाहट में उन्होनें भाग कर पकड़ना चाहा पर शीघ्र ही वो समझ गए कि उम्र के इस पड़ाव में वे लोग अब दौड़ कर ट्रेन नहीं पकड़ सकते थे । उन लोगों की ट्रेन छूट चुकी थी । घबड़ाहट में उनका दिल कूद कर हलक में अटक गया । अचानक उन्हें लगा कि इस सुनसान निर्जन अनजान प्रदेश के इलाके में वे क्या करें ? किंकर्तव्यविमूढ़ , भय और क्रोध से उनके चेहरे की मांसपेशियां तन गयीं । उन्होंने झल्लाते हुए पत्नी से कहा
” ये सब तुम्हारी वज़ह से हुआ , अब क्या करें ? हमारा मोबाइल और सारा सामान भी ट्रेन में ही रह गया , नहीं तो गोपाल से कह देते कि अगले स्टेशन पर सामान ले कर उतर पड़े । क्या यहां कोई टैक्सी मिल जायेगी जो हमें इस ट्रेन से पहले अगले स्टेशन पर पहुंचा दे ?
उधर श्रीमती जी इत्मीनान से कोहरे में विलुप्त होती ट्रेन को देखते हुए मन्थर गति से चल रहीं थीं । उन्होंने अपने कांधे पर पड़े पश्मीना शाल को ठीक से लपेट हुए मुस्कुराते हुए कहा
” पंडित जी , हमें इसी स्टेशन पर उतरना था , हमारा रिज़र्वेशन भी यहीं तक का था और हमारा होटल भी यहीं पर बुक है । यह स्थान शिमला से एक स्टेशन पहले स्थित है , वो देखिए गोपाल उतर कर सामने प्लेटफॉर्म पर सामान के साथ बैठा है । इस बार होटल वालों ने पिकअप एंड ड्राप सुविधा भी दी है चूंकि ट्रेन समय से कुछ पहले आ गई थी इस लिए समय काटने थोड़ा हम लोग टहल लिये , अतः होटल की कार आती ही हो गी । आप इतना परेशान क्यूं हो रहे हैं ? ”
तभी सामने से होटल का वर्दीधारी ड्राइवर हाथों में डॉ शर्मा जी के नाम की तख्ती लिए प्रगट हो गया । फटाफट गोपाल और ड्राइवर ने सामान कार में रख दिया । उनलोगों के आराम से बैठने के बाद ड्राइवर ने तपाक से डैश बोर्ड से एक ट्रे निकाल कर उसपर कपड़ा बिछाया और दो कप प्लेट्स उसमे सजा कर साथ लाये थर्मस की गर्म चाय कपों में उड़ेल कर पीछे बैठी सवारियों को दे दी । दाहिने हाथ से चाय का कप हाथ में पकड़ कर अपनी पीठ कार की सीट पर टिका इत्मीनान से अदरक इलायची वाली गर्म चाय के चार पांच घूंट भरने के बाद शर्मा जी ने अपने बायें हाथ के हल्के से स्पर्श से श्रीमती जी की हथेली अपने हाथ में ले कर दबाते हुए प्रसन्नमुद्रा में मनुहारते हुए कहा
” जब तुम हो साथ फिर ट्रेन की है क्या बिसात
जहां भी छूटे बस हो वहीं से इक नई शुरुआत ”
इसपर मैम आंखे तरेर तुनक कर बोलीं
” पंडित जी , मरीज़ देखने के सिवाय आप को आता ही क्या है ? आप मेरी सुनते कब हैं , सारा प्रोग्राम आपकी इस आपत्ति के बाद कि फिर इस बार भी शिमला जाना पड़ेगा , आपको बता कर बदला गया । पर आप मेरी बातों पर ध्यान कब देतें हैं , आप की भूलने की आदत इतनी बढ़ती जा रही है ! अब ये नींद की गोलियां खाना बन्द करो , मैं कब तक आपको आपकी बातें याद दिलाती रहूं , कभी कुछ काम खुद से भी कर लिया कीजिये । ये सब रिज़र्वेशन , होटल बुकिंग और अन्य घर बाहर की व्यवस्थाएं अब मेरे बस की नहीं हैं कभी अपने आप भी अपनी जुम्मेदारी सम्हालो …… ”
शर्मा जी के लंबे , शांत , सरल , सफल और सुखद वैवाहिक जीवन के अनुभवों ने उनकी सोच का दायरा श्रीमती जी से मिली अनुमति तक ही सीमित कर लिया था । वे कहां जाना है कब जाना है क्या करना है जैसे ज़िन्दगी के सवालों पर विचार करना छोड़ पत्नी पर आश्रित हो गये थे । वे जानते थे कि कभी पत्नी के द्वारा लिये गये फैसले में बहस की कोई गुंजाइश नहीं होती है , उनके अनुसार वैसे भी जब श्रीमती जी निर्णय ले ही चुकी हों तो उस पर दलील देने से क्या फायदा । लब्बोलुबाब वो जान गये थे कि अब होटल तक का ये घुमावदार चीड़ और देवदार की ऊंचाइयों पर से गुज़रता नैसर्गिक सौंदर्य से भरा ये पथ उन्हें अपनी मधुर चाय के साथ श्रीमती जी की मसालेदार झिड़कियों संग व्यतीत करना हो गा ।
कार में बज रहे मुकेश जी के गीत से उनकी गुज़र बसर बयाँ हो रही थी –
” …… तुम्हारे आने तलक हमको होश रहता है , हमको होश रहता है – फिर उसके बाद हमें कुछ ख़बर नहीं होती …. ”
कालांतर में दशक बीते , काल खंड , स्थान , लोग , लोभ आदि अब विस्मृति के आधीन हो चले ।
एक शाम शर्मा जी सोफे पर करीब में बैठी पत्नी से बोले
” ओये , तू कौन है ? ”
वो बोलीं –
” अरे , मैं तुम्हारी पत्नी हूं ! ”
शर्मा जी – ” वो कैसे , कब…… ”
फिर वो ठहरो अभी आती हूं कह कर पीछे बने दूसरे कमरे में चली गईं । कुछ देर के बाद अपने हाथों में अपनी शादी की एक बड़ी सी भारी भरकम फोटो एल्बम लिये अंदर आईं । पुनः सोफे पर शर्मा जी के करीब बैठ के उन्होंने एल्बम शर्मा जी के सामने खोल कर रख दी । फिर उसके कुछ पन्ने पलटते हुए अपने विवाह के कुछ चित्रों पर अपनी उंगली रख कर उन्हें दिखाते हुए बोलीं –
” पंडित जी , ये देखो तुम हो और ये मैं हूं और ये हमारी शादी की फोटो हैं । तुमसे मेरी शादी हुई है और मैं तुम्हारी पत्नी हूं । ”
शर्मा जी सन्तुष्ट भाव से बोले ” अच्छा ठीक है ”
और फिर न जाने किस शून्य में निहारने लगे ।