जब जब लिखता तेरा नाम
पुंज प्रकाश हृदय में भरता
जब जब लिखता तेरा नाम
रोम रोम पुलकित हो जाता
चित पाता है अबिरल विराम
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है नाच उठा मन मयूर मेरा
बरस गए बन कर घनश्याम
रिसती बहती हवा सुगन्धित
है चारों पहर व आठों याम
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अनुपम छटा घटा बन छाई
तब नयन न लेते हैं विश्राम
करुणा का सागर उफनाता
तुम दयानिधान हो मेरे राम
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इसी में मिलता योग तपस्या
सारे वेद पुरान व चारोधाम
सब संचित इसके अन्दर ही
मिलता यह प्रभु का पैगाम
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तू है मेरी भव बाधा हरता
राधा का चितचोर है श्याम
पावन धाम का पुण्य प्रताप
अमर अजर अमृत तेरा नाम
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रामचन्द्र दीक्षित’अशोक’