“जब-जब जरूरत पड़ें हमारे”
जब-जब जरूरत पड़ें हमारे,
हार बनकर गले का मान बढ़ाया,
तुम भी मेरे मर्यादा का,
देखो! थोड़ा सम्मान करो।
यहां-वहां ना फेंकों मुझे,
राहों में कुचला जाता हूं
मेरे कोमल भावनाओं का,
थोड़ा सा ध्यान करो।
ठोकर खाकर भी जनपथ पर,
मुस्कुराना सीखा है,
खंडित होती मनोवृत्ति पर,
एक छोटा सा एहसान करो।
मेरे महत्व को समझे लोग,
मुझे भी सुरक्षित स्थान दो,
बस कृपा दृष्टि हो मुझ पर की,
मेरा न कहीं अपमान हो।।
✍वर्षा (एक काव्य संग्रह)से/ राकेश चौरसिया”अंक”