जब घर से दूर गया था,
याद है मुझे,
जब घर से दूर गया था,
मन में जोश भरकर, चल पड़ा था..,
सोचा था बड़ा हो गया, अकेले रह लूंगा..,
पर जब दिन बीते , रात निकली..,
मन मेरा घर की यादों के पास खड़ा था..।
बाहर के खाने को देख ,
भूखा ही सो गया था,
मन ही मन उन दिनों,
मां के खाने को याद किया था..।
आदत यूं बिगड़ सी गई थी,
ना नींद थी ना चैन था,
गया था पढ़ने मन लगाकर,
पर किस्मत की मंजूरी नहीं थी..।
कुछ दिन में आदत हो गई,
अब थोड़ी जिंदगी संभाल गई,
पर जब परिणाम आया परीक्षा का,
तो फिर मन में निराशा भर गई..।
जब भी मन मेरा घबराया,
भरोसा मेरा डगमगाया
पापा ने मुझे यूं समझाया,
मन में मेरे थोड़ा ठहराव आया..।
ना जाने कैसे वो दिन निकले थे,
कितने ही बार शरीर से प्राण निकले थे,
संभाले नहीं संभालते थे,
ये किस्मत के मसले मेरे..!