जब किसी पेड़ की शाखा पर पल रहे हो
जब किसी पेड़ की शाखा पर पल रहे हो
एक पौधा तो अपना भी उगाना चाहिए
कितनी भी उड़ाने भरो आसमान में लेकिन
शाम होते ही धरती पर लौट आना चाहिए
चाहे मंजिलों तक पहुंचने में आए लाख मुश्किल
कभी किसी मौसम में नहीं घबराना चाहिए…
रोशनी कहां बिखेर पाए किसी पिंजरे का जुगनू
जग को रोशन करना है तो बाहर आना चाहिए
खुद से खुद ही बातें करके मन उत्साहित करलो
गर्दिश में भी हंसने का कहां कोई बहाना चाहिए
अगर रास्ते में सताती है तुम्हें भी धूप की गर्मी
कभी अनजानी राहों पर पेड़ लगाना चाहिए
एक अकेली गंगा अब कहां तक मैल धोएगी
मन का उतर जाऐ मैल ऐसे भी नहाना चाहिए
कोई सुन ना ले तुम्हारी खामोशी को आखिर
कभी खुद से अकेले में भी गुनगुनाना चाहिए
उस रहबर की रहमत हो अगर सर पर तेरे
भला और इस जमाने से तुझको क्या चाहिए
महफिल हो मदहोश चाहे कितनी भी आखिर
बिना शफकत से कहीं न आना जाना चाहिए
नहीं मायूस होना है इस भीड़ में जाकर
खुद में हंसने का भी एक बहाना चाहिए
कोई ला करके नहीं देगा चांद धरती पर
अपने किरदार को खुद से जगमगाना चाहिए
कोई हाथ देता है अगर तुमको आगे बढ़ाने को
खुदा वह साथ है तेरे तुझको समझ जाना चाहिए
कहां से होकर गुजरेगा तुम्हारी मंजिल का सफर
उस रहबर की रहमत का न अंदाज लगाना चाहिए
✍️कवि दीपक सरल
Language: Hindi