जब काल आया सामने, तब समझा,सब अज्ञान था|
संसार में भटके बहुत,आनंदधन नाहीं मिला |
आया बुढ़ापा, ढल चला, मजबूत काया का किला|
रोते हो क्यों, पहले जगत् -मन ,ज्यादा शैतान था?
जब काल आया सामने, तब समझा, सब अज्ञान था |
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए”एवं “कौंंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता
काल=मृत्यु