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4 Oct 2017 · 1 min read

जब कभी हम उनसे हाले दिल सुनाने निकले। उनके होंठों पे सदा वक्त न होने के बहाने निकले।।

जब कभी हम उनसे,
हाले दिल सुनाने निकले।
उनके होंठों पे सदा,
वक्त न होने के बहाने निकले।।

दो घ‌ड़ी इत्मिनान से,
ग़ुफ्तगु भी मयस्सर न हुआ।
अरि! हम नादां थे,
जो दिल को लगाने निकले।।

जब कफ़स-ए-जिस्म में,
दिल मिरा उलझने लगा।
रख हथेली पर जान,
खुद को गंवाने निकले।।

तब जाकर कहीं दिल को,
मिरे तसल्ली सा हुआ।
जब किसी और के बांहों में भी,
उनके ठिकाने निकले।।

वक्त-ए-रुख़्सत है,
अब अश्क बहालो तुम भी।
अब तो जाते हैं हम,
लोग मुझको सुलाने निकले।।

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