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4 Nov 2016 · 1 min read

जब कभी बैठा हुआ होता हूँ मयखाने में

जब कभी बैठा’ हुआ होता’ हूँ’ मयखाने में
पी रहा होता’ हूँ’ बस गम को मैं’ भुलाने में

जाम को होठ छुआ करके’ भी’ मैं पी न सका
उसकी’ तस्वीर नज़र आती’ है’ पैमाने में

ख़्वाब में मेरे’ अयाँ होने’ लगी जो हमदम
वो नज़र आती’ नहीं मुझको’ इस ज़माने में

बस दुआ इतनी’ है’ क़ामिल हो’ वफ़ाएं सबकी
उस ख़ुदा ने ही’ वफ़ा भर दी’ है’ दीवाने में

बात कुछ भी तो’ न थी फिर भी हुए’ क्यूँ रुस्वा
तोड़ बैठे वो’ मिरा दिल भी’ तो’ अन्जाने में

दिल्लगी तेरी’ कभी दिल की ‘लगी हो शायद
क्या मिला तुझको’ फ़क़त दिल को’ यूँ’ बहलाने में

खो गया तू ये बता किस गली में “जज़्बाती”
क्या मज़ा आया तुझे दिल से’ दिल लगाने में
जज़्बाती

1 Like · 3 Comments · 427 Views
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