जब उदास होना
जब उदास होना
बोना एक बीज
माटी में !
जब बंधनों में
जकड़ना
सोचना
नन्हीं चिड़िया सरीखा !
जब लिखना
तो वृहद
आकाश पर लिखना !
जब खिलना
खिलना नन्हीं
कली बनकर !
जब बोलना
बोलना अपनी
मातृभाषा में!
जब जाना
तो ऐसे जैसे
बसे हो हर मन में…
डा.रंजना वर्मा ‘रैन’
गोरखपुर