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6 Sep 2024 · 1 min read

जब अकेले ही चलना है तो घबराना कैसा

जब अकेले ही चलना है तो घबराना कैसा
मंजिल हो गर सामने तो रुक जाना कैसा

सोचना मत कि भाग्य साथ देगा
देखना मत कोई अपना हाथ देगा
कर भरोसा खुद पर कुछ भी तूँ पा ले
खुद के पंख ही नहीं हों तो उड़ जाना कैसा
जब अकेले ही चलना है…………………..

भीड़ के साथ चलने से क्या होगा
खाली हाथ मलने से भी क्या होगा
मेहनत किए बिना क्या होगा हासिल
बिना कर्म किए सुनो तो फल पाना कैसा
जब अकेले ही चलना है………………….

कदम-कदम पर दुनिया टोकेगी
आंधी-तूफान बनके रास्ता रोकेगी
पिछे मुड़कर मत देखना बढ़ते ही रहना
हौंसला रख कठिनाइयों से घबराना कैसा
जब अकेले ही चलना है………………….

‘V9द’ मंजिल यूँ ही नहीं मिलती
बीज बोए बिना कली नहीं खिलती
तकदीर के भरोसे मत बैठ हाथ बांधकर
जिंदगी हँस कर जियो रोते मर जाना कैसा
जब अकेले ही चलना है…………………..

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