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5 Feb 2022 · 1 min read

जबसे नैना

जबसे नैना लड़ गये हैं राह में अज्ञात से
आँख से ओझल नहीं इक पल हुआ वो रात से

कर रहा अपमान सबका और मद में चूर है
रब ने शायद दे दिया ज्यादा उसे औकात से

हैं सभासद मौन जब तक इक़ तराजू में तुलें
मूर्ख ज्ञानी की परख तो होती केवल बात से

गुटका जर्दा पान बीड़ी दारू भी आसान है
मुफलिसी के मारे केवल दाल रोटी भात से

ले रही थी मैं रजाई में पकोड़ों का मजा
ढह चुके थे उस समय कितने ही घर बरसात से

ज्योति हद से ज्यादा मत दो सबको समझाइश यहाँ
भूत लातों के कभी माने कहाँ हैं बात से

1 Like · 1 Comment · 311 Views
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