जपले प्रभु का जाप परिंदे…!!
कर अंतस निष्पाप परिंदे,
जपले प्रभु का जाप परिंदे।
डिग्रीधारी सुस्त पड़े हैं,
आगे झोलाछाप परिंदे।
आखिर कब तक ज़ुर्म सहेगा,
क्यों है तू चुपचाप परिंदे।
सुनकर वो फ़रियाद हमारी,
बोले रस्ता नाप परिंदे।
साफ़ दिखे जो बाहर जितना,
भीतर उतना पाप परिंदे।
कौन यहाँ अब सुनता किसकी,
क्या बेटा औ’ बाप परिंदे।
सब पापों का फल है मिलना,
कर ले पश्चाताप परिंदे।
कसमें, वादे, मन की बातें,
बिन पानी के भाप परिंदे।
फुस्स हुए सब बम बातूनी,
कैसा मुर्गा छाप परिंदे।
मुश्किल में जीना…, ही जीना,
क्यों मन में सन्ताप परिंदे।
पंकज शर्मा “परिंदा”🕊️