जन्मदात्री माँ
माँ वही है जिसके कदमों में बसता है सारा जहां ।
कहां भटकता है मनवा तू स्वर्ग तो है सारा यहां ।।
जिसने नौ दस मास तुझे अपनी कोख में धारा ।
जिसने शैशव काल में अपने आंचल में दुलारा ।।
उस माँ ने तुझे उंगली पकड़कर चलना सिखाया ।
उसके बोलना सिखाने पर प्यारे तुझे बोलना आया ।।
खुद गीले में सोकर उसने सूखे में तुझे सुलाया ।
दूध पिलाकर भूख से कभी न तुझे रुलाया ।।
मां की महिमा क्या कहें जग में सबसे ऊंचा स्थान है ।
क्या तीरथ करने जाता तू माँ चरणों में ही भगवान है ।।
मां को कभी दुखी ना करना सेवा करना उसकी सदा ।
उसको खुश रखकर “ओम्” करना दूध का कर्ज अदा ।।
ओमप्रकाश भारती “ओम्”