जनाब जावेद अख्तर साहब को पत्र
जनाब जावेद अख्तर साहब,दिली इस्तकबाल खैरमकदम
मुल्क में न करें विष वमन, रहने दें अमन
आप शायर और विद्यवान हैं
नामचीन और महान् हैं
आपने स्वयं सेवक संघ की तुलना
तालिबान से कर डाली
आप जैंसे कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने
दाद दी, बजा डाली ताली
लेकिन जनाब मेरी मोटी बुद्धि में
समानताएं घुस न पाईं!!!!
इसलिए आपसे पूछना चाहता हूं?
मैं भी समानताएं जानना-समझना चाहता हूं?
क्या संघ भी तालिबान की तरह वेरहम हिंसक है?
क्या संघ भी तालिबान की तरह ए के ४७ लेकर घूम रहा है?जीत की खुशी में निर्दोषों को मार रहा है?
महिलाओं की आबरू लूट रहा है?
क्या संघ भी आतंकवाद फैला रहा है?
दूसरे देशों में आतंकवादी भेज रहा है?
क्या संघ भी तालिबानियों के मदरसों की तरह
अपने शिशु मंदिरों में अवोध बच्चों को आत्मघाती
बना रहा है?
क्या संघ अन्य देशों की सेनाओं आम आदमी लक्षित धार्मिक दुश्मनों के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ रहा है?
क्या संघ ने भी तालिबान की तरह महिलाओं पर, पढ़ाई-लिखाई बंदिश लगाई है?
क्या संघ ने भी बंदूक की नोक पर सत्ता हथियाई है?
किसी मलाला यूसुफजई पर गोलियां चलाईं है?
क्या तालिबान भी संघ की तरह सेवा भावना से काम कर रहा है?
कृपा कर एक भी समानता बता दीजिए?
मेरी मोटी बुद्धि को सन्तुष्ट कीजिए!!!
अपने वयानों से समाज के जोड़ न तोड़िए
अपनी नज्मों से मरहम बना,, समाज के जोड़ जोड़िए
बाकी डा अर्थो पर छोड़िए।।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी