जनम जनम के लिए …..
जनम जनम के लिए …..
खनकने लगी
अचानक
यूँ
मेरे हाथ की
सुर्ख चूड़ी
जैसे
किसी की शोखियाँ
नसीमे सहर में
वस्ल का
पैग़ाम लाई हों
जैसे
ज़िस्म पे
किसी के सुर
कोई
नयी सरगम
लिखते हों
जैसे
किसी के लम्स
बीते लम्हों को
सांस देते हों
जैसे
बन्द पलकों के ख़्वाब
हकीकत में
मचलते हों
तू
तेरी चूड़ी
और
उसकी खनक में बसी
तेरी महक ने
बना दिया है
मुझे
जनम- जनम के लिए
सुहागन
सुशील सरना