जनता नहीं बेचारी है —
काव्य सृजन–
जनता नहीं बेचारी है–
कोरे आश्वासन की नींव हिली, वादों का गर्म बाजार है,
झूठी जुबान आकाओं की, स्वप्न कैसे होंगे साकार हैं?
जनता-जनार्दन ने सत्ता सौंपी, लोकतंत्र में जिम्मेदारी है,
सत्ता स्वाद सुख में कुर्सी से चिपके नेता खद्दर धारी हैं।
सत्ताधीशों जागो अब,काल का अल्टिमेटम जारी है,
अन्याय की चक्की में पिसती, जनता नहीं बेचारी है..
नेता अपना उल्लू सीधा करते ये कैसी फरमाबरदारी है,
मृगतृष्णा का छद्मावरण ओढ़ते,विषयों में पग भारी है।
सवा सौ करोड़ जन-मन आश्वासन घुट्टी पी बलिहारी हैं,
झूठी शान दिखाते नेता,सीट के बैठें बन अधिकारी है।
धर्म,मजहब में भोली जनता बाँटी,बड़े चतुर व्यापारी हैं।
अन्याय की चक्की में पिसती, जनता नहीं बेचारी है..
एक थैली के चट्टे-बट्टे ये थाली के बैंगन से लुढ़क रहे हैं,
देश की बागडोर संभालतें, हमाम में नंगें फुदक रहे हैैं।
बिछाकर नोटों का गद्दा तकिया,लंबी चादर तान रहे हैं,
दल बदलू मतलब परस्त,पीठ में पीछे खंजर घोंप रहे हैं।
आँखों पे पड़े परदे हटाओ, सत्य अपनाने की बारी है.
अन्याय की चक्की में पिसती, जनता नहीं बेचारी है..
कथनी करनी का भेद मिटाकर, कर्मशील बनना होगा,
ऊँच नीच अमीर गरीब की बढ़ती खाई को पाटना होगा।
क्षुधित तृषित बेघर मानव के अधिकार दिलाना होगा,
पूँजीपति के चंगुल से मानवता को मुक्त कराना होगा।
मोती चुन कर,जीवन पथ कुसुम खिलाने की तैयारी है,
अन्याय की चक्की में पिसती, जनता नहीं बेचारी है..
गाँव,बस्ती,नगर,देश का अन्नदाता धरती का भगवान है,
गलत सरकारी नीति से,सुख सुविधा न मिले अवदान है।
हम बदलेंगे, जग सुधरेगा, इतिहास यही दोहराता है,
कर्म कसौटी पर कसते हैं तो,कुँदन बनकर निखरता है।
अमृत धार जीवन होगा,तृषित कंठ सरसाने की बारी है,
अन्याय की चक्की में पिसती, जनता नहीं बेचारी है..
✍ सीमा गर्ग मंजरी,
मौलिक सृजन,
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश।